फ़िलासफ़ी
फ़िलासफ़ी ॰॰॰
philosophy, दर्शन, फ़लसफ़ा !! किस नाम से बुलाऊँ तुम्हें? एक अजीब होड़ हो गयी हो तुम॰॰ जैसे किसी हसीना के पीछे पड़ी भीड़ । philosophy, spirituality, meditation अलग अलग नामों से पीछे पड़े हैं लोग तुम्हारे। फ़लाँ की फ़िलासफ़ी, फ़लाँ का दर्शन, फ़लाँ का meditation॰॰ जैसे अलग-अलग दुकानों पर मिलते सेब,संतरे और अनार हों। तरह तरह के दार्शनिकों की कहानियाँ अलग-अलग तरह से वक़्त दर वक़्त पेश की जाती हैं ॰॰और अपने अंदर का दर्शन? उस दर्शन का क्या?
बापू ने कहा- नयनी तुम लिखो ,आख़िर लिखती क्यों नहीं? मैंने कहा - इससे क्या होगा? उन्होंने कहा -“अरे यार, तुमको होने ना होने से क्या लेना देना? उसका जो होगा अपने आप हो जाएगा, ये पता करना तुम्हारा काम नहीं है।
हम्म॰॰॰॰ अब इससे ज़्यादा और फ़िलासफ़ी, चाहिए क्या? कृष्ण ने कहा कर्म करो फल की चिंता मत करो। exactly !!!! और ये ही एक लाइन समझने के लिए न जाने कौन-कौन से बुद्ध, महात्मा, स्वामी कहाँ कहाँ नहीं भटके ।
हर रोज़ आधा घंटा meditation, spirituality , ध्यान, फ़िलासफ़ी में लगाना है। किस आधे घंटे की बात कर रहे हैं आप? उसके, जो दिन में दो बार एक ही वक़्त बताती है? मतलब ख़ुद के दर्शन के लिए भी अब घड़ी वक़्त बताएगी? फ़लसफ़ा, ख़ुद को देखने -जानने की बजाए दूसरों के देखने का मोहताज हो चला है अब? ॰॰॰और न जाने ये कौन से लोग हैं जो दीन -दुनिया के सब काम छोड़कर फ़लसफ़ा ढूँढने का ,आधा घंटा वक़्त तय कर देते हैं। फ़लसफ़ा, मुराक़बा , दर्शन ऐसे आता है क्या?
जिस बाहरी वक़्त को देख कर आप वक़्त ज़ाया कर रहे हैं वो आपके अंदर के उस वक़्त को माँग रहा है जो लाफ़ानी है, अनंत है।
इंसान के मन का वक़्त॰॰। वो मन जो 10 मिनट के लिए भी उतना ही काफ़ी है जितना आधा घंटा, एक घंटा या 24 घंटे और ये वो मन है जो सोते जागते आपके साथ चलता है। इसीलिए किए गए कर्म के फल की चिंता करके आप कर भी क्या लेंगे?
मसला ये नहीं कि आप किसको मानते हैं क्योंकि रास्ता दिखाने वाला गुरू तो कोई ना कोई होता ही है लेकिन ईश्वर, गुरू, मार्गदर्शक की खरी सोच उसका दर्शन जब फ़ैशन बनकर दुकानों में बिकने लगे तो आप उसकी फ़िलासफ़ी को समझ नहीं रहे बल्कि उसे ध्वस्त कर रहे हैं। फ़लसफ़ा दुनियावी कामों के साथ मन के अंदर के समय से ताल्लुक़ रखता है और गुरू उस फ़लसफ़े से आपकी पहचान करवाता है। फ़लसफ़े का रास्ता और वक़्त आपको ख़ुद तय करना होता है ।
तहज़ीब हाफ़ी का एक शेर याद आया है ॰॰
तुम्हें हुस्न पर दस्तरस है ॰॰ मोहब्बत-वोहब्बत बड़ा जानते हो।
तो फिर ये बताओ कि उसकी आँखों के बारे में क्या जानते हो।।
ये जोग्राफ़िया, फ़लसफ़ा ,सायकॉलाजी , साइंस, रियाज़ी वग़ैरह ये सब जानना भी अहम है।
मगर उसके घर का पता जानते हो?॰॰॰
आपकी नयनी
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