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सच

दुनिया की सबसे मुश्किल चीज़ है सच कहना , वो भी तब , जब ये सच किसी अपने से कहना हो।इन गुज़रे कुछ सालों में मैंने ये जाना है कि सच कहना सबसे आसान बात है और सच कहूँ तो ये शब्द बड़ा मश्कूक है , uncertain you know ॰ सच की भी अलग अलग अलमारियाँ होती हैं , बस निर्भर करता है किस वक़्त कौन सी अलमारी खोलनी है ।हाँ ! पर सच से पहले की चीज़ ज़रूर मुश्किल होती है - साहस , courage और सच मानिए तो इसकी तैयारी ही असल तैयारी है।लोग अक्सर कहते हैं कि झूठ   बोलने का साहस मुझमें नहीं है , इसका मतलब असल मुद्दा जसारत का है। जब कोई इंसान आपसे कहे “ क्या तुम सच कह रही हो ?” तो वो आपके सच को नहीं , अपने साहस को भी परख रहा है कि क्या उसमें सच सुनने का साहस है ॰॰॰ ?  सच बोलना रोज़ की कोशिश है ठीक उसी तरह जिस तरह दफ़्तर जाने के लिए रोज़ तैयार होना , Sunday के दिन भी वक़्त पर नहाना। और फिर ये ही कोशिश धीरे धीरे साहस में और साहस शांति में बदल जाता है , जैसे

फ़िलासफ़ी

फ़िलासफ़ी ॰॰॰ philosophy, दर्शन , फ़लसफ़ा !! किस नाम से बुलाऊँ तुम्हें ? एक अजीब होड़ हो गयी हो तुम॰॰ जैसे किसी हसीना के पीछे पड़ी भीड़ । philosophy, spirituality, meditation अलग अलग नामों से पीछे पड़े हैं लोग तुम्हारे। फ़लाँ की फ़िलासफ़ी , फ़लाँ का दर्शन , फ़लाँ का meditation ॰॰ जैसे अलग - अलग दुकानों पर मिलते सेब , संतरे और अनार हों। तरह तरह के दार्शनिकों की कहानियाँ अलग - अलग तरह से वक़्त दर वक़्त पेश की जाती हैं ॰॰और अपने अंदर का दर्शन ? उस दर्शन का क्या ? बापू ने कहा - नयनी तुम लिखो , आख़िर लिखती क्यों नहीं ? मैंने कहा - इससे क्या होगा ? उन्होंने कहा -“ अरे यार , तुमको होने ना होने से क्या लेना देना ? उसका जो होगा अपने आप हो जाएगा , ये पता करना तुम्हारा काम नहीं है।   हम्म॰॰॰॰ अब इससे ज़्यादा और फ़िलासफ़ी , चाहिए क्या ?  कृष्ण ने कहा कर्म करो फल की चिंता मत करो। exactly !!!! और ये ही एक लाइन समझने के लिए न जाने कौन - कौन से बुद्ध , महात्मा , स्वामी क