तुम बदल गयी हो

 You have changed now!!! ….

तुम बहुत बदल गयी हो।।

हाँऔर बदलना तो बदस्तूर चलता ही है  

मेरे ख़याल से ये बातें वो ही करते हैं , जो ख़ुद अपनी कमियों को छुपाना चाहते हैं। जो आप में बेहतराई के बदलाव नहीं चाहते, क्योंकि जो आप में बेहतर बदलाव चाहते या देखते हैं , वो सतही बातें नहीं करते और अक़्सर बदल जाने का सबब भी वो ही होते हैं जो ये सवाल दर--दर आपसे किए जाते हैं आपका बदल जाना, आप पर उनके अधिकार को जो ख़त्म कर देता है

   बदलाव अच्छे , बुरे हर तरह के होते हैं। दुनिया बदलती है, कायनात बदलती है, वक़्त बदलता है , हालात बदलते हैं ,

 शक़्ल, सूरत,मिजाज़, रवायतें सब के सब बदलते हैं और जो नहीं बदलता वो है- बदलना

जो ये सवाल मुझसे करते हैं वो ख़ुद भी जानते हैं कि वो ख़ुद कितनी तेज़ी से बदलते हैं। चूँकि आप पर वो अपनी सरपरस्ती खो चुके हैं इसलिए बेबुनियादी तोहमतें लगाकर वो अपने मन के एक ऐसे कोने को तसल्ली देना चाहते हैं , जिसे कभी तसल्ली मिलती ही नहीं।वरना बदलना तो एक ऐसी कैफ़ियत है जिस पर पूरी दुनिया टिकी है। 

तुम बहुत बदल गयी हो …” ये जुमला सिर्फ़ तब कहा जाता है जब कहने वाले को अपने मन के इस शैतान को निवाले देने होते हैं , जिसकी भूख , वो ख़ुद जानते हैं कि कभी नहीं मिटती। 

   जब सुख- दुःख में बदलता है तो पूछने वाले के पास सवाल नहीं तरस या दिखावा होता है लेकिन जब दुःख -सुख में बदलता है तब ! पूछने वाले के पास एक लालसा होती है जो आपके दुःख को सुख में बदलते नहीं देखना चाहती। 

असल संजीदा इंसान ऐसे किसी भी हालात में जुमलों का इस्तेमाल नहीं करते सिर्फ़ बदलाव को महसूस करते हैं और ज़रूरी रास्ते अख़्तियार करते हैं हर वक़्तकुछ कहा ही जाएये ज़रूरी नहीं

जी हाँ .. मेरा बदलना काफ़ी हद तक आपकी तरबीयत, तबीयत,सलीक़े और शख़्सियत पर मुन्हसिर है ।अच्छे बदलाव मेरे अपने हैं और बुरे!!!  आपका अपना नज़रिया, जिससे मेरा कोई वास्ता नहीं और भला हो भी क्यों ?


किस नाज़ से कहते हैं वो झुँझला के शब--वस्ल ,

तुम तो करवट भी  “बदलनेनहीं देते


अकबर इलाहाबादी 


आपकी नयनी 

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