पितृपक्ष
कहते हैं दादा दादी,अपने पोते पोतियों से , अपने ख़ुद के बच्चों से भी ज़्यादा प्यार करते हैं, तो फिरपितृदोष क्यों? आत्मा की शाँति का सम्बंध आगे की पीढ़ी से क्यों? माफ़ करने की सीख बड़े-बूढ़ेहमें दे कर जाते हैं और फिर वो ही दोष बन के हमारी कुंडली पर कैसे बैठ सकते हैं ? उन्हें तो हमेंग़लत रास्ते पर जाने से बचाना चाहिए ना ? मेरी दादी कभी मन में द्वेष नहीं रखती थीं,कोई कैसाभी हो माफ़ करती थीं तो ऐसे ही जितने भी पूर्वज रहे होंगे क्या वो अपनी पीढ़ियों को माफ़ नहींकरते होंगे? या उनको वहाँ कोई समझाने वाला ना होगा ,मेरी दादी जैसा ? गीता को पढ़ें तो पताचलता है कि ऐसा कोई दोष होता ही नहीं, आप जो पिछले कर्म करके आते हैं उसका ब्याज दे रहेहोते हैं. ये कौन से अतृप्त पूर्वज हैं जो आज तक हठ लगा के बैठे हुए हैं? इतनी असहिष्णुता? मुझेतो याद नहीं कि मेरे दादा -दादी ,नाना -नानी ने मुझे ऐसी असहिष्णुता की शिक्षा दी हो।
फिर आख़िर कौन हैं ये पूर्वज ,जिन्हें ईश्वर भी ना समझा पाया? अगर नया जन्म ले कर वापिस आगए तो फिर झगड़ा ही क्यों और जो बैकुंठ चले गये तो नाराज़ क्यों और जो कहीं ना गए वो तो यूँभी कहीं के ना रहे।
गीता के सातवें अध्याय को माने और नियम से पढ़ें , तो कहते हैं कि ऐसे जितने भी दोष हैं उनकानाश जड़ से हो जाता है फिर ये त्राहि त्राहि क्यों? इसके लिए पितृपक्ष और “पितृदोष ” का अन्तरसमझना होगा। पितृपक्ष वो समय है जब हम पूर्वजों के प्रति अपना आभार देते हैं और किसी भीतरह की बड़ी -छोटी गलती की माफ़ी माँगते हैं , इस बात का आभार देते हैं कि 84लाख योनियों केबाद इंसान के रूप हम उनके लिए आज भी मन में इज़्ज़त रखते हैं चाहे वो किसी भी योनि में हों, लेकिन उसके मूल स्वरूप को बिगाड़ कर ऐसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम को दोष का नाम दे करस्वयमसिद्ध ज्योतिषियों ने साधारण आदमी की जेब और दिमाग़ दोनों ढीला करने का वर्षों पुरानाउपक्रम बना लिया है । कालसर्प दोष , पितृदोष ऐसा कोई दोष किसी वेद, उपनिषद, पुराण में हैही नहीं, यदि कुछ है तो वो है परम सत्य, परमब्रह्म, परमशक्ति ईश्वर , हमारे कर्मों का हिसाब, हमारे अपने किए का लेखा जोखा। उसका पूर्वजों के दोष से क्या लेना देना? सिर्फ़ एक बात यादरखने की होती है क्षमा, दान, सम्मान- ये किसी की भी नाराज़गी दूर कर देता है। इतने पावन पर्वको दोष का नाम दे कर डरें नहीं बल्कि क्षमा माँगें , जो चले गए हैं वो आपके अपने ही थे , आपकीभावना उनसे ज़्यादा कौन पहचानेगा ?
फिर भी आप सबकी तसल्ली के लिए मैं ये चिट्ठी उन पितरों को पहुँचाना चाहती हूँ जो शाँत हैं,सुखी हैं ,वो बाक़ी के पितरों से मिलें और कहें कि यार तुम भी नाराज़गी छोड़ो और मस्त रहो धरतीपे बच्चों को भी काम करने दो मदद ना कर सको तो रास्ते का रोड़ा भी मत बनो ।
क्षमा बड़िन को चाहिए छोटन को उत्पात।
का रहीम हरि को घट्यो जो भृगु मारी लात ।।
हरि ओम्
आपकी नयनी
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