पल भर की ख़ुशी

 काफ़ी दिन हुए कुछ लिखा नहीं। आया तो बहुत कुछ, पर लिखा नहीं। इस वक़्त तो ये भी याद नहीं रहा कि याद क्या आया था? ऐसा अक़्सर ही होता है हमारे साथ ,क्योंकि दिमाग़ में कुछ ना कुछ जद्दोजहद तो चलती ही रहती है , कुछ ना कुछ तरद्दुद होता ही है और जब कुछ नहीं होता तो ये परेशानी खाए जाती है कि आज मौसम अच्छा है देखना कल नहीं होगा अरे!!!!!

कल की चिंता मत करो आज तो ख़ुश रहो ! जब ऐसा करो ! तो बात आती हैबस एक पल की ख़ुशी के लिए कल की क्यों नहीं सोचते ?” तो ऐसा है कि हर समाज oxymoron पर चलता है , मानो या मत मानो !! क्योंकि विरोधाभास होना, हर एक चीज़ के अस्तित्व को ही ख़त्म कर देगा जिससे परेशानी, अड़चन, रुकावट सामने आती हैं और अगर परेशानी ही सामने ना आएगी तो इंसान की विचार शक्ति, तार्किकता ही नष्ट हो जाएगी बाबूजी !

“If there is no conflict, there is no story .”

मन चंचल होता है , उसकी अपनी गति होती है किसी में कम-किसी में ज़्यादा। ये ही सबको अलग-अलग बनाती है , अगर सब नज़रिए ही एक हो जाएँ तो हम नयी चीजें पायेंगे कहाँ से

मन को क़ाबू में करोअरे सबसे बड़ी जद्दोजहद तो ये ही दे दी भाई !मुझे समझ नहीं आता ख़ुद पर ज़बर्दस्ती का ये अत्याचार क्यों? क्या ज़माने के और दुःख कम पड़ गए हैं

बुद्ध,नानक,महावीर, मसीहा और जाने कितने ऐसे बेचारे ये ही करते आए कि आने वाली नस्लों के लिए कुछ सीख का सबब बनें, पर मैं समझती हूँ हम बस इनके कहे या यूँ कहें सुने सुनाए सिद्धांतों को रट रहे हैं और रटते ही जा रहे हैं बस ! लेकिन उनकी दिमाग़ी जद्दोजहद के उस तथ्य को नहीं जान पा रहे कि जब उनके मुँह से ये बातें निकली होंगी।

बस! वो ही तो मन की शान्ति है  

और वो है उस क्षण की प्रसन्नता- जिसे हम दुनिया की रवायतों/ज्ञान/अनुभवों ये-वो की भेंट चढ़ा देते हैं जब तक आपकी क्षणिक प्रसन्नता किसी तरह का शारीरिक/मानसिक/नैतिक /सामाजिक नुक़सान नहीं करती , वो ग़लत नहीं कहला सकती।अगर आप उस से भविष्य में होने वाले दुःख को भी देख सकते हैं तो भी वो प्रसन्नता अपने शरीर में महसूस करना आपका अधिकार और आवश्यकता दोनों हैं। ये जानते हुए भी कि अगले ही पल में आप दुःख महसूस करेंगे, कम--कम ये ज़ज़्बातों का फ़र्क़ तो सिखा देगा।

ज़िंदगी में हर वक़्त मंतक़ या logic ही ज़रूरी नहीं होता। भावनाएँ सबसे बढ़कर होती हैं ख़ामख़ा जज़्बातों का ठीकरा फोड़ना बंद भी कीजिए!

सिर्फ़ अपनी ख़ुशी चाहना और अपने लिए ख़ुश रहना -दोनों में काफ़ी फ़र्क़ होता है ” 


सोचिएगा


आपकी नयनी

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