पितृपक्ष
कहते हैं दादा दादी , अपने पोते पोतियों से , अपने ख़ुद के बच्चों से भी ज़्यादा प्यार करते हैं , तो फिर पितृदोष क्यों ? आत्मा की शाँति का सम्बंध आगे की पीढ़ी से क्यों ? माफ़ करने की सीख बड़े - बूढ़े हमें दे कर जाते हैं और फिर वो ही दोष बन के हमारी कुंडली पर कैसे बैठ सकते हैं ? उन्हें तो हमें ग़लत रास्ते पर जाने से बचाना चाहिए ना ? मेरी दादी कभी मन में द्वेष नहीं रखती थीं , कोई कैसा भी हो माफ़ करती थीं तो ऐसे ही जितने भी पूर्वज रहे होंगे क्या वो अपनी पीढ़ियों को माफ़ नहीं करते होंगे ? या उनको वहाँ कोई समझाने वाला ना होगा , मेरी दादी जैसा ? गीता को पढ़ें तो पता चलता है कि ऐसा कोई दोष होता ही नहीं , आप जो पिछले कर्म करके आते हैं उसका ब्याज दे रहे होते हैं . ये कौन से अतृप्त पूर्वज हैं जो आज तक हठ लगा के बैठे हुए है