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पल भर की ख़ुशी

  काफ़ी दिन हुए कुछ लिखा नहीं। आया तो बहुत कुछ , पर लिखा नहीं। इस वक़्त तो ये भी याद नहीं आ रहा कि याद क्या आया था ? ऐसा अक़्सर ही होता है हमारे साथ , क्योंकि दिमाग़ में कुछ ना कुछ जद्दोजहद तो चलती ही रहती है , कुछ ना कुछ तरद्दुद होता ही है और जब कुछ नहीं होता तो ये परेशानी खाए जाती है कि आज मौसम अच्छा है देखना कल नहीं होगा । अरे !!!!! कल की चिंता मत करो आज तो ख़ुश रहो ! जब ऐसा करो ! तो बात आती है “ बस एक पल की ख़ुशी के लिए कल की क्यों नहीं सोचते ?” तो ऐसा है कि हर समाज oxymoron पर चलता है , मानो या मत मानो !! क्योंकि विरोधाभास न होना , हर एक चीज़ के अस्तित्व को ही ख़त्म कर देगा जिससे परेशानी , अड़चन , रुकावट सामने आती हैं और अगर परेशानी ही सामने ना आएगी तो इंसान की विचार शक्ति , तार्किकता ही नष्ट हो जाएगी बाबूजी ! “If there is no conflict, there is no story .” मन चंचल होता है , उसकी अपनी गति होती है । किसी में कम - किसी में