अरे तुम्हें तो पता है
ग़म दायमी और ज़िंदगी बेज़ार! कहाँ जाएँ, क्या करें किससे मिलें? सब कुछ तो बंद हो चला है, साँसें भी। दोस्त चले गए,अपने छोड़ गए, जो जाना तक नहीं चाहते थे वो भी विदा हुए। ऐसे में कुछ बाक़ी रहा? हाँ! प्रेम। लोगों से, दुनिया से , क़ायनात से। और इनसे भी हम सिर्फ़ प्रेम करने की बातें ही भर करते हैं, करते नहीं हैं।आज की तारीख़ जिस ज़लज़ले की गवाह है वहाँ प्यार का ताल्लुक़ शब्दों और उनके अंदर मौजूद सच्चाई से है। मुसीबतें आयीं थीं, आयीं हैं, आती रहेंगीं। इंसान जब पैदा होता है तो मुसीबतें साथ लिखवाकर लाता है, प्रकृति का नियम ही ऐसा है। लेकिन किसी से प्रेम करना और उसे जताना न सिर्फ़ दुआ बनता है बल्कि दवा भी। प्रेम ज़ाहिर करने की क़ुव्वत आज के वक़्त की अहम ज़रूरत है, जिस दौर से हम गुज़र रहे हैं वहाँ प्रेम महसूस करने के साथ, कानों को शब्दों की ज़रूरत है। “क्या पता कल हो ना हो!” परेशानियाँ तो आती ही रहेंगी, उनके पीछे मुसलसल छिपते रहना उनको दूर नहीं कर सकता, हाँ! पर प्रेम को दूर कर सकता है। दोस्तों का जाना , अपनों का साथ छूटना, हमारे अपने किए का नतीजा है, जिनसे शायद हम आज भी नहीं सीख सके!! “अरे तुम